- किसी को पुकारो नहीं ,किसी को दुत्कारो नहीं ,किसी को ललकारो नहीं.
- नासमझों पर क्रोध कर के अपना खून जलाने से क्या फायदा.
- साकार न होने पर भी ,सगुण न होने पर भी गुरु के दिए गुरुमंत्र के प्रति सघन श्रद्धा और अडिग विश्वास ,वो मिले न मिले,नित्य मंत्र का जाप ,गहरी आस्था के साथ करते रहो.
- "मौन से बड़ा संभाषण नहीं, मुस्कान से बड़ा कोई हथियार नहीं,क्षमा से बड़ी शक्ति नहीं."
- सम्पूर्ण वैभव के साथ विवेक की वल्गा (लगाम) हाथ में अवश्य हो.
- सत्य परेशान हो सकता है परास्त नहीं.
- सब को स्नेह दान दो.
- प्रेम का बीज डाल दिया गया है,सिंचन तो स्वयं ही करना है.
- वह भाव ही क्या जो केवल स्वयं के बारे में सोंचे - समक्ष बैठे प्रिय के प्रति ,उसके हित के प्रति समर्पित न हो.
- गुरु के प्रति निर्भरता से निर्भयता आती है.
- विनय श्रेष्ठता का अभेद्य द्वार है.
- हमारा जीवन वैसा ही होता है जैसा हमारा चिंतन.
- पूर्णता की प्राप्ति पात्रता एवं नम्रता से होती है.
- साहस की परिधि में सत्य की आत्मा जीवित रहती है.
- संतोष प्राकृतिक सम्पदा है.
- जीह्वा के फिसलने से पाँव का फिसलना ज्यादा अच्छा है.
- ज्ञान निर्देशित और प्रेम प्रेरित जीवन ही अच्छा जीवन है.
- झरोखा जितना खोलोगे उतना ही प्रकाश मिलेगा.
- तीन वस्तुओं की अति नहीं होती- दान, जप,और ज्ञान.
- गुरु ही मार्ग,गुरु ही मंजिल,गुरु साधना ,गुरु साधन, गुरु ही साध्य.गुरु ध्यान ,गुरु ध्यातव्य गुरु ही ध्येय हैं.
- ज्ञान के महासागर में डूबकर जब कोई अबोध सरल शिशु की तरह मेरी बाट जोहता है तब मैं भिन्न -भिन्न रूपों में आकर उसे अपने अंक में समेट कर चलता हूँ.
तुमतो बहती धारा हो न- वो कब ठहरकर इतिहास के पन्नों में ,ख़ुशी और गम के काले- अक्षरों में उलझती है?कोई भी कार्य गलत नहीं है, यदि उसका उद्देश्य गलत न हो.
- कोटि- कोटि जप और भाव से समर्पित एक तृण - मेरे लिए भाव का वह तृण ही अभीष्ट है.
-सृष्टि के आद्यगुरु .
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